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यासिर आराफात फिलिस्तीन के अभी तक के सबसे बड़े नेता एवं फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन के अध्यक्ष थे इनको शान्ति का नोबल पुरस्कार भी दिया गया था। ये फिलिस्तीन में 1994 से 2004 तक राष्ट्रपति रह चुके है यही फिलिस्तीन के प्रथम राष्ट्रपति भी थे।
पुरा नाम - मोहम्मद अब्दुल रहमान अब्दुल रऊफ अराफात अल-कुव्दा अल-हुसैनी
जन्म - 4/24 अगस्त 1929 काहिरा , इजिप्ट
माता - जहवा अबुल सऊद (Zahwa Abul Saud)
पिता - अब्देल रऊफ अल-कुव्दा अल-हुसैनी
पत्नी - सुहा अराफात (Suha Arafat)
संतान - 1
मृत्यू - 11 नवम्बर 2004
◆ प्राम्भिक जीवन {Early life}
यासिर अराफात का जन्म 4 अगस्त 1929 को मिस्र (Egypt) की राजधानी काहिरा में हुआ था इनके पिता का पूरा नाम अब्दुल रऊफ अल-कुव्दा अल-हुसैनी था। और ये फिलिस्तीनी थे लेकिन इनकी माता जहवा अबुल सऊद इजिप्ट से थीं।
जब ये 4 वर्ष के थे तो इनकी माता का देहांत हो गया। इनका परिवार उस समय आर्थिक तंगी से गुजर रहा था इनके पिता के सात बच्चे थे घर का खर्चा बहुत मुश्किल से चल पा रहा था इसीलिए इनके पिता ने कुछ समय के लिये इन्हें इनकी माता के परिवार में भेज दिया।और जब ये वहाँ गए तो ये धीरे-धीरे यहूदी(Jew) समुदाय के संपर्क में आने लगे ।
इस बात की खबर जब इनके पिता को हुई तो उन्होंने यासिर अराफात की खूब पिटाई की क्योंकि वो यहूदियों से सबसे ज्यादा नफरत करते थे।
हालांकि बाद में यासिर अराफात ने बताया कि मैं यहूदियों के संपर्क में इसलिए जा रहा था ताकी उनकी बौद्धिक क्षमता को समझ सकूँ , लेकिन ये बात उनके पिता को नही पता थी इसीलिए वो इन्हें मरते थे।
◆ शिक्षा {Education}
इनकी माता जी का देहांत तो बचपन में ही हो गया था इसलिए इनकी पढ़ाई का जिम्मा यासिर के पिता की बहन इनाम ने उठाया । और फिर इनका दाखिला King Fuad University में करवा दिया । यही यूनिवर्सिटी बाद में काहिरा यूनिवर्सिटी के नाम से विख्यात हुई जोकि इजिप्ट में है। जब इनका ग्रेजुएशन था तो उसी समय 1948 का अरब - इजराइल युद्ध शुरू हो गया था तो इन्होंने यूनिवर्सिटी को छोड़ दिया । और अरब फोर्स को ज्वाइन कर लिया।
लेकिन इस युद्ध में दुर्भाग्यवश या शौभाग्यवस इजराइल की जीत हुई और अरब के देश हार गए।
ये फिर सेना से वापस गए और फिर अपनी सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की उसके बाद ये नौकरी की तलाश में बाहर निकले ।
लेकिन ये हमेशा इजराइल से बदला लेने की सोचते रहते थे।
फिर इन्होंने स्कूल में अध्यापक के रूप में कार्य किया।
और 1959 में इन्होंने एक संगठन को बनाया जिसे फतेह संगठन बोला जाता था । इस संगठन में बहुत कम लोगो ने अपनी रुचि दिखाई। इसका अनुमान इससे लगाया जाता है कि 1959 में ये संगठन शुरू हुआ और 1962 यानी कि तीन साल में महज 300 लोग ही इसमें जुड़े।
यासिर अराफात के नेतृत्व में उनके संगठन ने शांति की जगह पर संघर्ष का रास्ता अपनाया और हिंसा को बहुत अधिक बढावा देते थे इनका निशाना हमेशा इजराइल होता था और इजराइल वाले भी इन्हें ढूंढ ढूढ़कर मरते थे ।
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1988 में अचानक यासिर हुसैनी में बदलाव आ गया और वो संयुक्त राष्ट्र में शांति का दूत बनकर खड़े हो गए। इसी कारण इन्हें बाद में नोबेल परुस्कार से सम्मानित भी किया गया इनका संबंध भारत के गाँधी परिवार से भी बहुत अच्छा था । ये श्रीमती इंदिरा गांधी को अपनी बड़ी बहन मानते थे
और भारत के 1991 के चुनाव अभियान के दौरान राजीव गाँधी को जानलेवा हमले के बारे में इन्होंने सावधान भी किया था।
◆ इनकी मृत्यु कब और कैसे हुई ?
इनकी म्रत्यु 11 नवम्बर 2004 को हुई थी । इनकी मौत पर सबने कहा कि ये बीमारी के कारण मरे है लेकिन इनकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद इजराइल पर आरोप लगने शुरू हो गए कि इजराइल ने इन्हें जहर देखर मारा है।
और जब मामला और अधिक बढ़ा तो इनके शरीर को कब्र से निकाला गया और उसकी जाँच हुई। जिसमें स्विट्जरलैंड के डॉक्टरों ने दावा किया कि इनके शव के अवशेषों में रेडियोधर्मी पोलोनियम-210 की थोड़ी बहुत मात्रा मिली है।
हालांकि की दोस्तों उनकी मौत आज भी रहस्य बनी हुई है।
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