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Guru Gobind Singh ; गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 1633 ई में बिहार के पटना शहर में हुआ था इनका जन्म होते ही पूरा सिख समुदाय खुशी से झूम उठा था क्योंकि सिखों को उनका 10वां गुरु मिल गया था।आइये जानते हैं इनकी पूरी जीवन गाथा

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             ★ गुरु गोबिंद सिंह ★

 

Guru gobind singh
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दोस्तों समय समय पर हमारी भारत भूमि पर कुछ ऐसे महान  लोगोँ का अवतरण होता रहा है जिनके विचार और पराक्रम को देखकर हमारा जीवन प्रकाशमय हो जाता है इन्हीं महान लोगोँ की सूची में गुरु गोबिंद सिंह को गिना जाता है।इनका जन्म उस समय हुआ जब भारत पर मुगल सल्तनत का शासन चल रहा था इस समय मुगल शासकों की कार्यनीति और उनके दुर्व्यवहार से भारत की जनता असंतोष में थी इसलिए इनके जन्म के समय में भी इनके पिता गुरु तेग बहादुर के नेतृत्व में सिख-आंदोलन चलाया जा रहा था।


■आइये जानते हैं गुरू गोबिंद सिंह जी की जीवन गाथा


◆ प्रारंभिक जीवन 

● गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 1633 ई . में बिहार के पटना शहर में हुआ था इनका जन्म होते ही पूरा सिख समुदाय खुशी से झूम उठा था क्योंकि सिखों को उनका 10वां गुरु मिल गया था। ये बचपन से ही एक बुद्धजीवी बालक थे । इसलिए बचपन मे ही ये समझ गए थे कि अगर हमें मुगलों के आंतक और भ्रष्टाचार को खत्म करना है तो हमे समाज को संगठित करना पड़ेगा। इसलिए इन्होंने बचपन से ही संगठन बनाने की ओर ज्यादा ध्यान दिया।


◆ गुरु गोबिंद सिंह जी धार्मिक विचारधारा

● आपकी जानकारी के लिए बता दूं की गुरु गोबिंद सिंह जी की लड़ाई उस समय के मुगल शासन से थी न कि इस्लाम धर्म से कुछ लोग उनकी लड़ाई को धर्म से जोड़ते हैं किन्तु ऐसा बिल्कुल भी नहीं है इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि इनकी लड़ाई में पीर बुद्धू शाह सहयोग कर रहे थे।इसके अलावा भी इन्होंने कई पठानों को अपने यहाँ काम पर रखा था और नबी खां और गनी खां ने इन्हें मुगलों से बचाया भी था। गुरु गोविंद सिंह सभी धर्मों को बराबर तवज्जों देते थे वो सबके साथ समान व्यवहार करते थे। गुरू गोबिंद सिंह जी जाति-पाति को खत्म करने के लिए सिखों के नाम के आगे सिंह जोड़ा था ताकि वो अपने आप को शेर की तरह महसूस कर सके।

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◆ गुरु की पदवी धारण करने के बाद

● सिख धर्म को गुरुनानक (बाबा नानक) ने आरंभ किया था और यही सिख समुदाय के प्रथम गुरु भी थे। सिख समुदाय के सबसे आखिरी/दसवें गुरु गोबिंद सिंह को उनके गुण कौशल को देखकर उन्हें 10 वर्ष की आयु में ही गुरु का पद मिल गया था। गुरु नानक के समय से संगठित हो रहे सिख समुदाय के लोग गुरु गोबिंद सिंह का समय आते आते भारी संख्या में संगठित हो चुके थे।और ये सभी घुड़सवारी और तलवार बाजी भी करते थे । इनका समय आते आते सिखों में राज काज वाला कार्य भी आरंभ हो गया था अबतक गुरु लोग भी थोड़ा बहुत राजा के समान रहने लगे थे और राज काज का काम संभालने के लिए इनके यहाँ पर भी कुछ अधिकारी लोग रहते थे जिन्हें 'मसन्द' कहते थे। 

● गुरु गोबिंद सिंह के पितामह गुरु हरगोविंद सिंह जी पहले ही अपने शिष्यों को पूरा सैनिक बना चुके थे।और वो स्वयं भी सैनिक की वेशभूषा में रहना पसंद करते थे उनके शिष्य उन्हें बादशाह कहते थे।


◆ गुरु गोबिंद सिंह की रचनाएं

● जिस समय गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु की पदवी धारण की उस समय तक पंजाब प्रांत में सिखों की संख्या में काफी व्रद्धि हो चुकी थी। पंजाब के सिख अपने गुरु से बहुत प्रेम करते थे। इसलिए वहाँ के लोगों ने आग्रह किया कि हमारे गुरु हमारे साथ आ के रहे जिससे हम सब उनकी सेवा कर सके।अपने शिष्यों के आग्रह पर गुरु जी पंजाब के आनंदपुर नामक गाँव आये और यहाँ पर वे लगभग 20 वर्षों तक रहे यही पर रहें थे उन्होंने हिंदू धर्म ग्रंथों  बड़ी गहराई से अध्धयन किया इसी बीच उन्होंने 'दसम ग्रंथ' नामक एक पुस्तक का सम्पादन भी किया।

● इसके अलावा इन्होंने दो और पुस्तकों का संपादन किया था। 'चंडी का वार' और 'चंडी चरित्र' इन दोनों पुस्तकों में वीर रस की कविताएं लिखी हुई हैं।इन्हीं पुस्तकों और कविताओ के माध्यम से इन्होंने अपने लोगों में साहस और वीरता का संचार किया था ये एक अच्छे आशु कवि भी थे। ये जब उपदेश देते थे तो उसी में कविताएं भी बोलने लगते थे इससे सभी श्रोता मंत्र मुग्ध होकर सुनते थे।इन्होंने नाटक पर भी एक पुस्तक लिखी है जिसे 'विचित्र नाटक' कहते हैं

● गुरु गोबिंद सिंह वास्तव में एक अच्छे कवि, विचारक और विद्वान पुरुष थे ये भी गुरु नानक की तरह एक ही ईश्वर को मानते थे ये सभी धर्मों को बराबर सम्मान देते थे कभी भी इन्होंने किसी अन्य धर्म का विरोध नही किया।

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◆ खालसा पंथ की स्थापना (1399ई.)

● गुरु गोबिंद सिंह ने 1399 ई. में बैसाखी वाले दिन 'खालसा पंथ' की स्थापना की।

● बैसाखी वाले दिन गुरु जी ने आनंदपुर साहिब में लोगों को जमा करवाया। यहाँ पर हजारों की संख्या में लोग जमा हुए कुछ समय बाद गुरु जी अपने भक्तों को सामने आए और उन्होंने वहाँ पर मौजूद सभी लोगों से कहा आज खालसा के लिए इंसान के बलिदान की आवश्यकता है। जो भी स्वेच्छा से बलि चढ़ना चाहता है सामने आए।ये सुनकर महफिल में सन्नाटा छा गया कोई इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि वो बलि के लिये राजी हो जाए।कुछ समय पश्चात उनमें से एक सख्स निकल कर आया गुरु जी उसे एक तम्बू में लेकर गए और जब बाहर आये तो उनके हाथ में खून से सनी एक तलवार थी।

● इसके बाद एक एक करके कुल पाँच लोग को ये तम्बू में ले गए और उसके बाद ये पांच लोग सुसज्जित कपड़ों में गुरु जी के साथ बाहर आये । इन्हें 'पंच प्यारे' प्यारे बोला जाता था क्योंकि ये अपनी मृत्यु का भय छोड़कर बलि के लिए तैयार हो गए थे।

● गुरु गोबिंद सिंह ने पूरे सिख समुदाय को बताया कि उन्हें पांच वस्तुओं को आवश्यक रूप से ग्रहण करना है। वे वस्तुयें हैं-

1. केश

2. कंघा

3. कच्छ

4. कृपाण

5. कड़ा

इन्हें 'पांच ककार' कहा जाता है। सिख समुदाय के सभी लोग इन पांच वस्तुओं को अपने पास जरूर रखते हैं।


◆ औरंगजेब Vs गुरू गोबिंद सिंह 

● जब सिख समुदाय के सभी लोग सैनिक की भांति इकट्ठे हुए तो इससे आस-पड़ोस के राजाओं को इनसे जलन होने लगी और इसीलिए इन्हें आस-पड़ोस के राजाओं से कई बार युद्ध भी करना पड़ा जिसमें ये हमेशा विजयी होते किन्तु जब धीरे धीरे सिखों की वीरता की खबर मुगल शासक औरंगजेब तक पहुँची तो वह चिंतित और भयभीत हो गया की उसकी राजधानी दिल्ली के पास ही एक नई शक्ति तेजी से उभर रही है। जिस समय इसे सूचना मिली वह उस समय दक्षिण में था और यही से उसने अपनी सेनो को आदेश दे दीया कि जाओ पंजाब पर आक्रमण करो कुछ दिनों बाद औरंगजेब की सेना ने पंजाब को घेर लिया।

● लेकिन किसी प्रकार गुरु गोबिंद सिंह और उनके कुछ शिष्य इस कठनाई से बाहर निकलने में सफल रहे।

● इसके बाद औरंगजेब और गुरु गोबिंद सिंह जी के मध्य 6-7 वर्षो तक युद्ध चलते रहे इन्ही लड़ाइयों में गुरु जी के दो पुत्र शहीद हो गए थे और इनके दो पुत्रों को सरहिंद के सूबेदार ने जिंदा दीवार में चुनवा दिया था।

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◆ गुरु गोबिंद सिंह जी का महापरिनिर्वाण

● बहुत से दुःख और कठिनाइयों में भी गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना धैर्य बनाये रखा इसीबीच  औरंगजेब ने गुरु जी की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया लेकिन उनकी गिरफ्तारी से पहले ही दुष्ट औरंगजेब की मृत्यु हो गयी।

● और फिर राज गद्दी को लेकर औरंगजेब के पुत्र आपस में लड़ने लगते हैं।और इस लड़ाई में गुरु जी ने औरंगजेब के बड़े बेटे बहादुर शाह का समर्थन किया।बाद में बहादुर शाह ही दिल्ली का शासक बना।

● एक बार बहादुर शाह से मिलने गुरु जी दक्षिण जा रहे थे तो रास्ते में इनके किसी शत्रु ने इन्हें घायल कर दिया और उसी स्थान पर 42 वर्ष की अवस्था में गुरु गोबिंद सिंह जी स्वर्ग सिधार गए।


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