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Kakori Kand : 9 अगस्त 1925 को घटित एक छोटी सी घटना के लिए 18 महीने मुकदमा चला । इस मुकदमे के फैसले में मामूली से दोष के लिए भारत के नौनिहालों को फाँसी जैसी क्रूरतम सजा सुनाई गई ।सम्पूर्ण जानकारी In hindi

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                    ★ काकोरी काण्ड ★

9 अगस्त 1925 को घटित एक छोटी सी घटना के लिए 18 महीने मुकदमा चला । इस मुकदमे के फैसले में मामूली से दोष के लिए भारत के नौनिहालों को फाँसी जैसी क्रूरतम सजा सुनाई गई । यह अंग्रेजों के अत्याचार की पराकाष्ठा थी किन्तु जिन्हें यह सजा सुनाई गयी उन्होंने इस सजा को लापरवाही से सुना और हँस दिए । जैसे उन्हें कुछ हुआ ही नहीं । वे पूरे जोश से निम्नांकित पंक्तियाँ गाते चल दिए ।

 ' सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है । 

  देखना है जोर कितना बाजुए -कातिल में है । 

भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के आरम्भिक दिनों में हर भारतीय युवक के हृदय में अंग्रेजी शासन एवं उसके अत्याचार के विरुद्ध चिंगारी सुलग रही थी । अनेक युवकों ने सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग अपनाया । 

सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए पर्याप्त हथियार खरीदना आवश्यक था और हथियारों की खरीद के लिए धन की आवश्यकता थी । बहुत विचार विमर्श के बाद इनके द्वारा सरकारी खजाना लूटने का निर्णय लिया गया । सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली गाड़ी के दिवतीय श्रेणी के डिब्बे में कुछ जवान बैठे थे । काकोरी स्टेशन से एक - डेढ़ मील गाड़ी बढ़ी ही थी कि क्रान्तिकारियों ने गाड़ी रोक ली । सभी यात्रियों को समझा दिया गया कि ये डरें नहीं क्योंकि उनका उद्देश्य यात्रियों को तंग करने का नहीं , सिर्फ सरकारी खजाना लूटना है । यह घटना 1925 में काकोरी नामक स्थान पर घटी । अतः इसे ' काकोरी काण्ड ' के नाम से जाना जाता है।

 काकोरी काण्ड से अंग्रेज शासकों में खलबली मच गई । उन्हें विश्वास था कि यह क्रान्तिकारी जत्थे का काम है । क्रान्तिकारियों को पकड़ने के लिए जाँच शुरू की गयी । शाहजहाँपुर में कुछ नोट पकड़े गये । गिरफ्तारियाँ की जाने लगीं । राम प्रसाद बिस्मिल के साथ कुल बाइस क्रान्तिकारियों पर मुकदमा चलाया गया । 

                    ★ रामप्रसाद बिस्मिल ★

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क्रान्तिकारी रामप्रसाद बचपन में बड़े नटखट स्वभाव के थे । आरम्भ में इनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था । इनकी प्रवृत्ति को देखकर इनके पिता पं . मुरलीधर तिवारी इन्हें किसी व्यवसाय में लगाना चाहते थे । माँ इन्हें पढ़ाना चाहती थी । माँ के प्रभाव से इन्हें अंग्रेजी पढ़ने का अवसर मिला । इनके पड़ोस में एक पुजारी थे ये बड़े ही सच्चरित्र व्यक्ति थे । इनका प्रभाव बालक राम प्रसाद पर पड़ा । वे व्यायाम और अध्ययन में रुचि लेने लगे । इसी समय आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा लिखित ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन करके इनके जीवन के इतिहास में एक नया मोड़ आ गया और जीवन की दिशा बदल गई । रामप्रसाद बिस्मिल जब नवीं कक्षा में पढ़ते थे तभी लखनऊ में अखिल भारतीय कांग्रेस के सम्मेलन में गये । यहाँ उनका परिचय कई क्रान्तिकारियों से हुआ । अपने मित्र की सहायता से स्वतन्त्रता के लिए कार्य कर रही क्रान्तिकारियों की एक गुप्त संस्था के सदस्य बन गये । इन्होंने एक संगठन की स्थापना की जिसका नाम ' हिन्दुस्तानी रिपब्लिकन एसोसिएशन ' था । इसकी बागडोर समप्रसाद बिस्मिल के बाद चन्द्र शेखर आजाद के हाथ में आई । आजाद ने इसका नाम ' हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन " रख दिया ।

राम प्रसाद बिस्मिल क्रान्तिकारी होने के साथ - साथ लेखक भी थे । इन्होंने अपनी पहली पुस्तक " अमेरिका को स्वतन्त्रता कैसे मिली ' का प्रकाशन कराया । इसके अलावा देशवासियों के नाम सन्देश , बोलशेविकों की करतूत , मन की लहर , कैथेराइन , स्वदेशी रंग आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं ।

काकोरी काण्ड में जिन बाईस लोगों पर मुकदमा चलाया गया और सजा सुनायी गई उसमें कुछ को कालापानी , कठोर कारावास के साथ ही रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाकउल्ला खाँ , राजेन्द्र लाहिडी तथा ठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सजा हुई । 

पं . राम प्रसाद को गोरखपुर जेल में 19 दिसम्बर को फाँसी हुई ।फाँसी के पहले वाली शाम 18 दिसम्बर को जब उन्हें दूध पीने को दिया गया तो उन्होंने यह कह कर इनकार कर दिया कि अब तो माता ( भारतमाता ) का दूध पीऊँगा । उन्होंने अपनी माँ को एक पत्र लिखा । जिसमें देशवासियों के नाम सन्देश भेजा और फाँसी की प्रतीक्षा में बैठ गए । 


क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल से उनके माता - पिता जेल में मिलने गये । उन्हें देखकर बिस्मिल की आँखों में आँसू आ गए । उनकी आँखों में आँसू देखकर मों ने कहा ' यह क्या ? क्या तुम्हारा इन्कलाब खत्म हो गया ' , मेरे बेटे से अंग्रेज सरकार काँपती थी , इसलिए मैं गर्व से सिर उठा कर चलती थी पर फॉसी की सजा सुन कर तुम बच्चों की तरह रो रहे हो " " माँ तुम जानती हो मैं कायर नहीं । मैं मृत्यु से भी नहीं डरता । मेरी आँखों में आंसू तो इसलिए है कि तुम जैसी माँ फिर कहाँ पाऊँगा । " विस्मिल ने उत्तर दिया "

 जब फाँसी के तख्ते पर ले जाने वाले आये तो वे ' वन्देमातरम ' भारतमाता की जय कहते हुए तुरन्त उठ कर चल दिए । चलते हुए कहा - 

मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे

बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे । 

जब तक कि लन में जान , रगों में लहू रहे 

तेरा ही जिक्रे यार तेरी जुस्तुजू रहे । 

फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहा - 

' मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ " फिर उन्होंने एक शेर पढ़ा - 

" अब न अहले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़ एक मिट जाने की हसरत , अब दिले बिस्मिल में है । "

इसके बाद प्रार्थना कर के मंत्रों का जाप करते हुए गोरखपुर के जेल में वे फाँसी के फंदे पर झूल गए।


                    ★ अशफाक उल्ला खां ★

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आजादी की लड़ाई में जिन लोगों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया उनमें अशफाक उल्ला खाँ का नाम विशेष उल्लेखनीय है । अशफाक उल्ला खाँ शाहजहाँपुर के रहने वाले थे । वे तैराकी घुड़सवारी क्रिकेट , हॉकी खेलने तथा बन्दूक चलाने में घर ही में प्रवीणता प्राप्त कर चुके थे । पं ० रामप्रसाद से इनकी बचपन से ही दोस्ती थी । अशफाक उल्ला खाँ ने रामप्रसाद से क्रान्तिकारी कार्य में शामिल होने की इच्छा प्रगट की । उनके बहुत आग्रह पर उन्हें भी क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल कर लिया । अशफाक उल्ला कवि भी थे । फाँसी के कुछ घंटे पूर्व उन्होंने लिखा था।

 कुल आरजू नहीं है , है आरजू तो बरा यह 

रख दे कोई जरा सी खाके वतन कफन में । 

अशफाक उल्ला खाँ को फैजाबाद जिले में 19 दिसम्बर को फाँसी हुई । वे बहुत खुशी के साथ , कुरान शरीफ का बस्ता कंधे से टाँगे हाजियों की भाँति कलमा पढ़ते फाँसी के तख्ते के पास गये । तख्ते को चूमा और लोगों से कहा – “ मेरे हाथ इन्सानी खून से कभी नहीं रंगे , मेरे ऊपर जो इल्जाम लगाया गया वह गलत है , खुदा के यहाँ मेरा इन्साफ होगा " । इसके बाद उनके गले में फंदा पड़ा और खुदा का नाम लेते हुए वह इस दुनिया से कूच कर गये ।


                      ★ राजेन्द्र लाहिड़ी ★

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काकोरी काण्ड में फाँसी पर चढ़ने वाले शहीदों में राजेन्द्र लाहिड़ी भी थे । राजेन्द्र लाहिडी पहले क्रान्तिकारी सान्याल बाबू के दल में थे , किन्तु जब अनुशीलन दल हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ में मिल गया उस समय राजेन्द्र बाबू बनारस के डिस्ट्रिक्ट आर्गनाइजर नियुक्त हुए । वे प्रान्तीय कमेटी के सदस्य भी हुए । राजेन्द्र लाहिड़ी को 17 दिसम्बर 1927 को गोण्डा जेल में फाँसी दी गई । 14 दिसम्बर को उनके द्वारा लिखे गये पत्र का अंश - 

देश की बलिवेदी को हमारे रक्त की आवश्यकता है । मृत्यु क्या है ? जीवन की दूसरो दिशा के अतिरिक्त और कुछ नहीं । इसलिए मनुष्य मृत्यु से दुःख और भय क्यों माने ? यह उतनी ही स्वाभाविक अवस्था है जितना प्रातः कालीन सूर्य का उदय होना । यदि यह सच है कि इतिहास पलटा खाया करता है तो मैं समझता हूँ कि हमारी मृत्यु व्यर्थ न जायेगी , सबको मेरा नमस्कार अन्तिम नमस्कार -


                      ★ रोशन सिंह ★

Roshan singh
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क्रान्तिकारी रोशन सिंह को फाँसी होने का अन्देशा किसी को नहीं था , परन्तु फाँसी की सजा सुनकर भी उन्होंने जिस धैर्य , साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया उसे देखकर सभी दंग रह गए ।

ठाकुर रोशन सिंह शाहजहाँपुर जिले के नवादा नामक ग्राम के रहने वाले थे । बचपन से ही वे दौड़ धूप करने में बहुत आगे थे । असहयोग आन्दोलन के आरम्भ से ही उन्होंने इसमें कार्य करना शुरू कर दिया और शाहजहाँपुर एवं बरेली जिले के गाँवों में घूम - घूम कर इस आन्दोलन का प्रचार करने लगे ।

ठाकुर रोशन सिंह अंग्रेजी का मामूली ज्ञान रखते थे , किन्तु हिन्दी तथा उर्दू अच्छी तरह जानते थे । जेल से फाँसी के तख्ते तक बराबर उनका आचरण एक निर्भीक पुरुष की भाँति था । फाँसी के छः दिन पहले उन्होंने अपने मित्र को पत्र में लिखा " 

मेरी मौत किसी प्रकार अफसोस करने लायक नहीं है । मेरा पूरा विश्वास है कि दुनिया की कष्ट भरी यात्रा को समाप्त करके मैं अब आराम की जिन्दगी के लिए जा रहा हूँ । हमारे शास्त्रों में लिखा है जो आदमी धर्मयुद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है जो जंगल में रह कर तपस्या करने वालों की । 

जिन्दगी जिन्दादिली को जान - ए - रोशन 

वरना कितने मरे और पैदा होते जाते हैं । 

                                         आखिरी नमस्ते 

                                            आपका रोशन।


फाँसी के दिन श्री रोशन सिंह पहले ही तैयार बैठे थे । जैसे ही इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट जेल के जेलर का बुलावा आया आप गीता हाथ में लिए मुस्कराते हुए चल पड़े । फाँसी पर चढ़ते ही उन्होंने वन्देमात्रम का नाद किया और ओऽम् का स्मरण करते हुए शहीद हो गए ।

हमारे देश के शहीद भारत के आकाश में देश - प्रेम , बलिदान एवं क्रान्ति के ऐसे नक्षत्र हैं जो सदियों तक हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे और नित नव उत्साह का संचार करते रहेंगे 

मरते ' बिस्मिल ' , रोशन , लहरी , अशफाक अत्याचार से । होंगे पैदा सैकड़ों इनके रुधिर की धार से ।

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